Monday 6 June 2016

व्यावहारिक निर्देशिका पटकथा लेखन : एक जरूरी किताब :- मनोज कुमार झा

   हिंदी के महत्त्वपूर्ण कथाकार और 'जिसने लाहौर नहीं वेख्या वो जनम्या ही नहीं' जैसे विख्यात नाटक के रचनाकार असग़र वजाहत की 'व्यावहारिक निर्देशिका पटकथा लेखन' नये और उभरते हुए पटकथा लेखकों के लिए एक बहुत ही जरूरी किताब है।
हिंदी में पटकथा लेखन पर पुस्तकों का अभाव है और खासकर वैसी पुस्तक का जो असग़र वजाहत साहब ने लिखी है। पटकथा लेखन पर यह एक अनिवार्य टेक्स्ट बुक है।
इस किताब के नाम से ही जाहिर है कि यह यह पटकथा लेखन की तकनीक की जानकारी देने वाली है। पहले ही यह स्पष्ट कर दिया गया है कि 'पुस्तक का उद्देश्य है कि इसके माध्यम से पटकथा-लेखन की तकनीक सीखी जा सके।' यही कारण है कि इस किताब में सिनेमा के इतिहास, सैद्धांतिक पक्ष और फिल्म समीक्षा आदि पर चर्चा नहीं की गई है, बल्कि क्रम से पटकथा लेखन के हर पहलू का विश्लेषण किया गया है। पटकथा, कहानी, कहानी के विविध प्रकार, पटकथा के लिए उपयुक्त कहानी, संवाद, संवाद की भाषा, उसके अनेकानेक रूपों आदि पहलुओं की संक्षिप्त, पर ठोस जानकारी दी गई है। हर अध्याय में में संबंधित विषय-वस्तु की प्रमुख बातों को हाइलाइट कर दिया गया है, ताकि पाठक सूत्र रूप में मूल परिभाषाओं को हृदयंगम कर सकें।
प्रोफेसर असग़र वजाहत दशकों से फिल्मों में सक्रिय हैं। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण फिल्मों और टीवी सीरियल्स के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखे हैं। प्रख्यात फिल्मकार मुज़फ्फर अली की 'गमन' की कहानी, उनकी दूसरी फिल्म 'आगमन' के संवाद लिखने के अलावा 1979 में उन्होंने 'ग़ज़ल की कहानी' नामक डाक्युमेंट्री फिल्म बनाई थी। 1982-83 में 'बूंद-बूंद' सीरियल के लिए कहानी, स्क्रिप्ट और डायलॉग लिखा। प्रोफेसर वजाहत ने सुभाष घई और विनय शुक्ला जैसे दिग्गज निर्देशकों के लिए भी लेखन किया है। उन्होंने राजकुमार संतोषी की फिल्म के लिए पटकथा लिख रहे हैं, जो उनके नाटक '...लाहौर नहीं वेख्या' पर आधारित है। असग़र वजाहत फिल्म विधा के अधिकारी विद्वान हैं और लगातार पटकथा लेखन कार्यशालाओं का आयोजन करते रहते हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहने के बाद जामिया के ही मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रह चुके हैं। साथ ही, यूरोप के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया भी है।
इस किताब में पटकथा लेखन के विविध पहलुओं को संक्षिप्त, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से सोदाहरण समझाया गया है।
कहानी, कहानी का विकास, कहानी के विविध प्रकार, कहानी में उपकथाएं, कहानी के पात्र, पात्रों के रूप, पात्रों के चरित्र-चित्रण के विविध माध्यम, संवाद और पात्रों के नामकरण पर संक्षिप्त, लेकिन सारगर्भित जानकारी दी गई है।
संवादों की भाषा, संवादों के प्रकार, संवादों के माध्यम से पात्रों का चरित्र-चित्रण, संवादों में प्रतीक, बिंब, मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रयोग आदि के बारे में उदाहरण के साथ बताया गया है। साथ ही, आंगिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज) के बारे में विशेष उल्लेख किया गया है, जिसके बिना अभिनय को पूर्णता नहीं मिल सकती। आंगिक भाषा का महत्त्व एक्टिंग में सबसे ज्यादा है।
पुस्तक में कैसे किसी कहानी को स्क्रीन-प्ले में बदला जाता है, इसे सीन-दर-सीन लिख कर अच्छी तरह समझाया गया है।
सिनेमा की भाषा पर अलग से अध्याय है, जिसमें फिल्मांकन से संबंधित तमाम तकनीकी जानकारी दी गई है। इनडोर शूटिंग. आउटडोर शूटिंग, कैमरे का अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल, शॉट्स के विविध रूपों और उनके लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकी शब्दावली के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।
डाक्युमेंट्री फिल्मों के लिए लेखन पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। लेखक ने डाक्युमेंट्री फिल्मों के इतिहास, डाक्युमेंट्री के स्वरूप और डाक्युमेंट्री निर्माण की पूरी प्रक्रिया को क्रमबद्ध तरीके से समझाया है।
साथ ही, डाक्युड्रामा लेखन के बारे में ठोस सारगर्भित जानकारी दी है। आज टीवी पर डाक्युड्रामा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। न्यूज स्टोरी को डाक्युड्रामा के रूप में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है, क्योंकि ऑडियंस पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। ऐसे में, डाक्युड्रामा पर जो विशेष जानकारी लेखक ने दी है, उसकी उपादेयता स्वयंसिद्ध है।
लेखक का मानना है कि एक अच्छे पटकथा लेखक के लिए सिनेमा के सभी पहलुओं की अवधारणात्मक और तकनीकी जानकारी होना जरूरी है। पटकथाकार को एक्टिंग की भी अच्छी समझ होनी चाहिए।
सिनेमा अभिव्यक्ति के सबसे सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है और लगातार इसका प्रभाव एवं प्रसार व्यापक होता जा रहा है। भारत में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के विकास की दर बहुत तेज है। फिक्की (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स) के अनुसार हिंदी सिनेमा 30 बिलियन डॉलर का उद्योग हो चुका है। भारत में हॉलीवुड से भी ज्यादा फिल्में बनती हैं और दर्शकों की संख्या भी लगातार बढ़ती ही जा रही है। भारतीय फिल्मों का एक अंतरराष्ट्रीय बाज़ार भी विकसित हुआ है। ऐसे में, फिल्म उद्योग में अपार संभावनाएं हैं। चूंकि फिल्म निर्माण का आधार ही पटकथा होती है, इसलिए पटकथाकारों की मांग बढ़ना स्वाभाविक है।
फिल्म की सफलता अच्छी पटकथा पर ही आधारित होती है। यह देखा गया है कि अच्छे सब्जेक्ट्स पर बनाई गई फिल्में भी पटकथा कमजोर होने के कारण पिट गईं।
एक अच्छा पटकथाकार वही हो सकता है, जिसे फिल्म विधा की गहरी समझ तो हो ही, साथ ही अन्य कला माध्यमों की भी जानकारी हो। यह ठीक है कि पटकथा लेखन एक तकनीक है, पर यह क्रिएटिविटी से भी जुड़ा है। यह जरूरी नहीं कि एक क्रिएटिव राइटर अच्छा पटकथा लेखक भी हो, पर सफल पटकथा लेखक के लिए क्रिएटिव होना जरूरी है। किताब में लेखक ने यह इशारा किया है।
कुल मिला कर, यह किताब पटकथा लेखन के क्षेत्र में मील का पत्थर है और सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत ही जरूरी है। पटकथा लेखन पर यह सारगर्भित किताब हर जागरूक और इस क्षेत्र में हाथ आजमाने वाले लेखक को अवश्य पढ़नी चाहिए।

समीक्षक  -    मनोज कुमार झा                        
व्यावहारिक निर्देशिका पटकथा लेखन
असग़र वजाहत
राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011

मूल्य : 250 रुपए

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